जाने क्यों दिल
उम्मीद रखता है,
लौट आने की
उस पत्थर की मूरत से,
जिस पर बस
अहम् का नशा है
अपने पत्थर होने
की ताकत का,
बार-बार चोट लगती है,
बार-बार दिल रोता है,
क्यों अक्सर ये मेरे
साथ ही होता है।
दिया तो प्रेम ही था
लेकिन मिली क्यों
नफरत मुझे,
क्या पत्थर सचमुच
इतना पत्थर हो गया
कि दर्द देना भी जैसे
उसके लिए खिलौना
हो गया...!!!
#ज्योत्सना
बहुत खूब
ReplyDeleteआभार आपका ।
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