Thursday, 19 November 2015

पत्थर ही है वो

जाने क्यों दिल
उम्मीद रखता है,
लौट आने की
उस पत्थर की मूरत से,
जिस पर बस
अहम् का नशा है
अपने पत्थर होने
की ताकत का,
बार-बार चोट लगती है,
बार-बार दिल रोता है,
क्यों अक्सर ये मेरे
साथ ही होता है।
दिया तो प्रेम ही था
लेकिन मिली क्यों
नफरत मुझे,
क्या पत्थर सचमुच
इतना पत्थर हो गया
कि दर्द देना भी जैसे
उसके लिए खिलौना
हो गया...!!!
#ज्योत्सना

2 comments: