Sunday, 1 November 2015

एक अधूरी मुलाकात

उन अंतिम दो शब्दों
ने नाप लिया मन को,
दो दिल
मिले भी तो
अजनबी बन के।
बातें तो बहुत की
फिर भी दूरियां थी,
एक तरफ
खामोशी थी तो
एक तरफ
आँसू थे छलके।
ना जाने कब टूटे
ये अश्कों का बांध,
रोके से न रूके अब,
बहा ले जाये गर
गिले शिकवों को,
तो कितना अच्छा हो...!!!
#ज्योत्सना

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