वक़्त लगता है,
कुछ ठहरा हुआ सा,
नि:शब्द, भावविहीन,
क्रोधमुक्त और उदासीन,
न पाने की चाह
और न खोने का गम,
खुश हूँ अब
वापस लौटकर।
राहें फिर वहीं ले आई,
जहाँ सब कुछ छूट गया था,
एक रोशनी की
किरण समेटे वो
समय लौट आया फिर
मुझे तलाशने।
#ज्योत्सना
Monday, 30 November 2015
नि:शब्द हूँ अब
Thursday, 19 November 2015
पत्थर ही है वो
जाने क्यों दिल
उम्मीद रखता है,
लौट आने की
उस पत्थर की मूरत से,
जिस पर बस
अहम् का नशा है
अपने पत्थर होने
की ताकत का,
बार-बार चोट लगती है,
बार-बार दिल रोता है,
क्यों अक्सर ये मेरे
साथ ही होता है।
दिया तो प्रेम ही था
लेकिन मिली क्यों
नफरत मुझे,
क्या पत्थर सचमुच
इतना पत्थर हो गया
कि दर्द देना भी जैसे
उसके लिए खिलौना
हो गया...!!!
#ज्योत्सना
Thursday, 12 November 2015
शब्द
पता नहीं शब्द
कहाँ खो गये,
ढूंढा था बहुत
पर मिले नहीं,
प्रेरणा से ही
उपजे थे
और बिना उसके
बस खो गये
एक विरान डगर पर,
शब्दों का है मायाजाल
शब्द ही हंसाते हैं
शब्द ही रुलाते हैं,
शब्द ही बंधे हैं
मोतियों के जैसे,
शब्द ही ले आते हैं
खुशी में भी आँसू ,
शब्द ही बन जाते हैं
दु:ख में भी संबल..
करो न ऐसा प्रहार कभी
शब्दबाण से,
जो छलनी कर दे
उस हृदय को
जो भरा हो आत्मिक भावों से,
भरा हो करुणा से,
भरा हो प्रेम से।
#ज्योत्सना
Tuesday, 3 November 2015
एक छोटा बच्चा
एक छोटा बच्चा
जिंदा था कहीं
अंतर्मन में,
इस दुनिया के
छल और कपट से दूर,
चाहता था बस
महसूस करना
थोड़ा सा अपनापन
और स्नेह तुम्हारा,
जिंदा रखें
उस बच्चे को,
हम हमेशा
अपने मन में,
तो ना हों ये
दर्द के रिश्ते,
जो छोड़ जाते
सन्नाटे मन में।
बच्चे तो कभी रोते,
कभी हंसते,
कभी झगड़ते,
आपस में
मिल ही जाते हैं,
जब उनके मन
मिल जाते हैं।
#ज्योत्सना
दु:ख का रिश्ता
दु:ख के रिश्ते
दिलों को जोड़े,
सुख के रिश्ते
कच्चे होते,
है एक ऐसा
दु:ख का रिश्ता,
जो लगता बिल्कुल
अपने जैसा,
दु:ख का रिश्ता
मिल जाये तो,
लगता सब कुछ
पा लेने सा...!!!
#ज्योत्सना
मेरा जंगल जब याद मुझे आया...
आज फिर
नयन भर आये
अश्रुओं से,
करके याद
सुनहरे दिन,
पल पल का वो
साथ तुम्हारा,
जब चलते थे
निर्जन वन।
छोड़ा तुमको
बीच सफर में,
समय था तब
प्रतिकूल हमारे,
आज भी तुम
वहीं खड़े हो,
यूँ ही लहराते
हरे भरे...!!!
#ज्योत्सना
किस्मत
सर्द हवायें बह रही हैं झूमती,
मदमस्त होकर,
कहीं दूर एक गरीब,
बचा रहा खुद को
झीनी एक चादर के अंदर,
किस्मत कैसी उसने ये पाई है,
जाग रहा रातों में,
खुद के वजूद को बचाते,
समेटते,
करता अगले दिन का इंतजार।
#ज्योत्सना
वो अंतिम शब्द
वो अंतिम शब्द
सहेज कर रखे हैं,
उन शब्दों को
पिरो कर एक दिन
जन्म लेगी कविता
तुम्हारे ही शब्दों में।
शब्द बह रहे
मन बयार में,
निर्झर,चंचल,
मचल रहे उर में
बनने को कविता
की माला,
देखो कितने अमोल
शब्द थे,
वो जो तुम छोड़ गये थे
बना इस मन को मरूस्थल।
#ज्योत्सना
तब याद मुझे भी कर लेना...
सांसों की इस माला के,
जाने कब बिखर जायें मोती,
जिक्र करो जब ढाई आखर का,
तब याद मुझे भी कर लेना।
जीवन की अंतिम संध्या में,
हो नाम तुम्हारा होंठो पर,
जब भी दुःख की बदली छाये,
तब याद मुझे भी कर लेना।
नसीहतें मेरी तुम्हें कभी रास न आई,
चाहा था खूब ऊँचे उठो,
जब भी मन का कोना हो खाली,
तब याद मुझे भी कर लेना।
जीवन बहुत छोटा है पर
यादें हैं इसमें बड़ी-बड़ी,
रखना याद सदा मीठी बातों को,
मन में जब नफरत का तूफां थम जाये,
तब याद मुझे भी कर लेना।
सफर लम्बा है और अकेले चलते जाना है,
जिंदगी ने कदम-कदम पर आजमाना है,
जब भी इस राह पर बोझिल हो सफर,
तब याद मुझे भी कर लेना।
#ज्योत्सना
कलम
कलम भी ढूंढती है वजह,
कागज पर चलने के लिए,
वजह ही खो जाये तो
कलम बेचारी क्या करे...!!!
मन के भाव कभी पिरोया करते थे,
शब्दों के धागों में,
भावशून्य हुआ जब मन तो,
वो धागा भी क्या करे...!!!
कलम अब चलती नहीं,
उतनी रफ्तार से,
मन की गति थम सी गई,
सुनकर कटु शब्दों के वार से...!!!
#ज्योत्सना
Sunday, 1 November 2015
निर्वात
कहा था तुमने निर्वात
निर्वात नहीं रहता,
भर जाता है
एक दिन,
देखो
तुम झूठे निकले।
ये जो शब्द थे तुम्हारे,
कहनेको अंतिम,
पर एक नई कविता
का प्रारम्भ थे,
दिन बीते, समय बीता,
पर ये निर्वात कभी
भर ना पाया।
#ज्योत्सना
एक अधूरी मुलाकात
उन अंतिम दो शब्दों
ने नाप लिया मन को,
दो दिल
मिले भी तो
अजनबी बन के।
बातें तो बहुत की
फिर भी दूरियां थी,
एक तरफ
खामोशी थी तो
एक तरफ
आँसू थे छलके।
ना जाने कब टूटे
ये अश्कों का बांध,
रोके से न रूके अब,
बहा ले जाये गर
गिले शिकवों को,
तो कितना अच्छा हो...!!!
#ज्योत्सना