Tuesday, 13 June 2017

तुम्हारा आग्रह माँ...

दुविधा में हूँ
कैसे स्वीकार करूँ
तुम्हारा आग्रह माँ...

बरसों बीत गये
तुमको देखे,
बहुत शिकायतें हैं तुमसे,
इतने बरसों की।

मेरा कसूर क्या था
जो तुम मुझको भूल गई,
एक नन्हीं जान को
अपनी खुशियों की खातिर
भूल गई।

तुम्हारे आँचल की छांव को
हमेशा तरसती रही हूँ,
बिन माँ की बच्ची
सुनते-सुनते बड़ी हुई हूँ।

अब जीना मैंने सीख लिया था,
बिन आँचल की छांव के,
जैसे कड़ी धूप में भी
रुक न सके जो पांव थे।

एक मौका दिया है वक्त ने
शायद फिर हमको भी,
तुम्हारा प्रेम जागृत हुआ है
इतने वर्षों बाद भी।

चाहती हूँ मैं भी
तुम्हारे आँचल में समा जाना,
वर्षों का जो खालीपन था,
चाहती हूँ उसे समेट लेना।

जानती हूँ तुम भी
जूझ रही हो ज़िंदगी से,
बस एक बार पुकार लो
तो चली आऊं मैं दौड़ के।

कैसे बताऊं सबको, 

ये कहानी तुम्हारी और मेरी ज़िंदगी की,

पर एक दिन वक्त सुना ही देगा,

दास्तां माँ -बेटी की...!!!

#ज्योत्सना

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