तुम्हें भूल जाती हूँ अक्सर,
ज़िंदगी की आपा-धापी में,
अचानक याद आ गई तुम्हारी,
जब वो लेख पढ़ा जो
तुम्हारे लिए लिखा था...
एक स्त्री को
ममत्व का एहसास
तुमने ही तो कराया था,
जब तुमने आँखें खोली थी,
मेरे आँचल में...
तुम्हारा वो मासूम स्पर्श,
रूई के सफेद फाहे की तरह,
तुम्हारा चेहरा...
सब कुछ आँखों के सामने है,
जैसे कल की ही बात हो...
बस तुम्हारा यूं
अचानक से चले जाना
जैसे सपना था मेरे लिए
पर हकीकत भी यही थी,
एक काला साया आया
सफेद कोट पहने
और छीन ले गया
कुछ ही घंटों में...
तुम्हें मुझसे सदा के लिए...
पीड़ा है बहुत मन में,
जो दिखती नहीं...
लेकिन
समय के साथ भरे घाव
अचानक यूं हरे हो जाते हैं...
तुम्हारे जाने का दिन जब
यूं सामने आ जाता है...!!!
#ज्योत्सना
Tuesday, 20 June 2017
अनिकेत....
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