Monday, 17 April 2017

अपने जीवन को तुम यूं ही...

अपने जीवन को तुम यूं ही,
पर निंदा में न बेकार करो...!!

तुममें है असीमित ऊर्जा,
उस ऊर्जा का सदुपयोग करो...!!

नवजीवन दो निराश प्राणी को,
सकारात्मक ऊर्जा का संचार करो...!!

स्वयं की क्षमता को पहचानो,
भीड़ का हिस्सा व्यर्थ न बनो...!!

दूर रहो पर निंदा से,
अपनी ऊर्जा को सकारात्मक करो...!!

ध्यान न अपना भटकाओ,
किसी निरीह के तुम काम आओ...!!

महापुरुषों के गुणों को पहचानो,
प्रशंसा में समय व्यर्थ न करो...!!

अपना लो उनके सद्गुणों को,
तुम भी किसी के पथ प्रदर्शक बनो...!!

अपने जीवन को तुम यूं ही,
पर निंदा में न बेकार करो...!!

#ज्योत्सना

बस मेरी न सही पर तुम सुन लो उन निर्धन की पुकार...

कुछ शब्द
उन भरी आँखों पर भी
लिख दो,
जो समेटे है हृदय में
अनगिनत तूफानों को,
बस आज सुन लो
इस भारी हृदय की व्यथा
और मुक्त कर दो
इस उद्वेलित मन को।
क्यों आज व्याकुल है मन,
बांटने को आतुर तुमसे
हर वो बात,
जो कर जाती है मन को तार,
बस मेरी न सही,
पर तुम सुन लो
उन निर्धन की पुकार...!!!
#ज्योत्सना

Wednesday, 12 April 2017

वो राह में मिली एक सिसकती ज़िंदगी...

०७.०४.२०१७ की शाम बेटे के साथ बाज़ार से घर को लौटते रास्ते में अंधेरा था तो मोबाईल की टॉर्च जलाकर थोड़ा ही आगे बढ़ी तो एक वृद्धा जो शायद अस्सी वर्ष के आस-पास रही होंगी, सफेद बेतरतीब बाल, अचानक रास्ता रोककर कहने लगी, बेटा मेरा कमरे का ताला खोल दो। मैं चौंक गई और उनके साथ गेट के अंदर कदम रखा। समझ नहीं पाई कि वो अपना ताला क्यों नहीं खोल पा रही थी। चाबी को दुपट्टे में बांधा हुआ था। टॉर्च की रोशनी में देखा तो हाथ फ्रेक्चर था। मैंने ताला खोला और वो पहले अंदर जाकर लाईट जला आई। मैं भी दरवाजे पर खड़ी थी तो वह रोने लगी कि कुछ दिन पहले कोई बाईक वाला हाथ में फ्रेक्चर कर चला गया। परिवार में सब होते हुए भी अकेली व बेबस थी। उनका रोना देखकर बहुत खराब लगा।
मुझे अंदर आने को बोली तो मैं अंदर चली गई।बेटा बाहर ही खड़ा रहा। मैंने पूछा तो बताया कि बेटा बेटी व नाती पोतों से भरा परिवार है लेकिन उन्हें कोई पूछने वाला नहीं। खाना भी कभी कोई दे जाता है तो खा लेती हैं वरना भूखी ही सो जाती हैं। एक हाथ से सब काम बहुत मुश्किल से होते हैं।
अचानक बच्चों की तरह बिलखने लगीं। मन भारी हो आया। कहने लगी दूध, फल आदि कुछ भी नहीं मिलता इस हालत में जबकि डॉक्टर ने कहा है।
मुझसे कुछ कहा न गया क्योंकि पूरी स्थिति से अपरिचित थी, फिर भी ईश्वर पर विश्वास रखने को कहा और सोचने लगी कि इनके लिए क्या मदद की जाये। इसके बाद उन्हें थोड़ा ढांढस बंधा मैं आने लगी तो उन्होंने आते रहना कहा। कमरे से बाहर निकलते गेट बंद कर निकली तो यही सोचती रही कि क्यों बच्चे इतने स्वार्थी हो जाते हैं जो उम्र के इस पड़ाव पर माता-पिता को अकेला छोड़ देते हैं।
घर आकर श्रीमान जी को बात बताई और उनकी जानकारी लेने को कहा। अगले दिन वापस कर्मभूमि लौटना था।
सभ्य समाज में न जाने ऐसी कितनी कहानियां बंद कमरों के पीछे छिपी हैं जो सोचने पर विवश करती हैं। ये कहानियां अगर उज़ागर हो जाये तो खुद को सभ्य कहने वाला समाज किसी से नज़र नहीं मिला पायेगा...!!!
#ज्योत्सना

Tuesday, 11 April 2017

वो पुराने ख़त...

मेरे प्रिय मित्रों को समर्पित...

याद आ गये वो दिन
बड़े सुहाने से,
जब कुछ ख़त
मित्रों के मिले
बक्से पुराने से..!!
कितना स्नेह
हुआ करता था आपस में,
दूर रहकर भी
जुड़े हुए थे ख़तों से,
वही स्नेह आज भी
बना हुआ है,
बस ख़तों की जगह
अब वॉट्स एप
आ गया है।
#ज्योत्सना