Monday, 4 March 2019

वो कुछ दिन गंगा किनारे...

अक्सर उस शहर पर पढ़ती है नज़र
तो याद आ  जाती हैं पुरानी यादें
जब पहली बार ठीक से देखा
और जाना प्रकृति को,
बियाबान जंगल में यूं
तम्बू में रहना,
शहर की चकाचौंध से दूर,
गंगा की कलकल बहती धारा की
जब चांदनी रात में आवाज़ सुनाई देती
और चांदनी में नहाई चांदी सी रेत चमकती,
यूं अलाव जलाये आधी रात तक सबसे बतियाना,
जिंदगी जैैसे आज भी बुला रही हो वहाँ...!!

No comments:

Post a Comment