Sunday, 13 January 2019

माँ....

सब कुछ भुलाकर काश ज़िंदगी हो पाती कोरे पन्नों सी...
ऐसा नहीं कि सब खराब हो...
बहुत कुछ पाया भी है...
और वो सब मिला उसकी वजह से...
जो जिंदगी में था ही नहीं...
जब अभाव होता है जिंदगी में,
तभी ज़ुनून होता है कुछ पाने का...
लोगों की जो नज़रें देखती थी और जतलाती थी बेचारगी को,
सच कहूं वही प्रेरित करती थी कुछ कर गुजरने को....
अपना मुकाम पाने को जो....
हाँ, बिन माँ के बहुत कुछ सरल नहीं था ज़िंदगी में,
पिता का साया सदा साथ रहा,
पर कभी लगता है ना, माँ होती तो ऐसा होता,
वैसा होता, ज़िंदगी कुछ तो अलग होती ना...
हाँ, ये अभाव हमेशा रहा जीवन में...
आज भी है जब आभासी दुनियां में
देखती हूँ  तुमको...
पर न जाने क्यों अज़नबी लगती हो मुझे तुम... माँ...
इस ज़िंदगी की कहानी का सूत्रधार तो तुम ही हो माँ....

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