दरवाजे अक्सर
तभी बंद होते हैं,
जब किसी के आने की
उम्मीद खत्म हो जाती है।
कुछ दरवाजे फिर खुलते हैं,
सुबह की किरण के साथ,
लेकर नये एहसास...
लेकिन ऐसे भी होते हैं
कुछ दरवाजे
जो बंद हो जाते हैं सदा के लिए,
क्योंकि उन दरवाजों के पीछे
दफन हो जाती हैं वो उम्मीदें,
जो कभी पूरी नहीं होंगी...!!!
#ज्योत्सना
Wednesday, 28 June 2017
दरवाजा...
Tuesday, 20 June 2017
अनिकेत....
तुम्हें भूल जाती हूँ अक्सर,
ज़िंदगी की आपा-धापी में,
अचानक याद आ गई तुम्हारी,
जब वो लेख पढ़ा जो
तुम्हारे लिए लिखा था...
एक स्त्री को
ममत्व का एहसास
तुमने ही तो कराया था,
जब तुमने आँखें खोली थी,
मेरे आँचल में...
तुम्हारा वो मासूम स्पर्श,
रूई के सफेद फाहे की तरह,
तुम्हारा चेहरा...
सब कुछ आँखों के सामने है,
जैसे कल की ही बात हो...
बस तुम्हारा यूं
अचानक से चले जाना
जैसे सपना था मेरे लिए
पर हकीकत भी यही थी,
एक काला साया आया
सफेद कोट पहने
और छीन ले गया
कुछ ही घंटों में...
तुम्हें मुझसे सदा के लिए...
पीड़ा है बहुत मन में,
जो दिखती नहीं...
लेकिन
समय के साथ भरे घाव
अचानक यूं हरे हो जाते हैं...
तुम्हारे जाने का दिन जब
यूं सामने आ जाता है...!!!
#ज्योत्सना
Tuesday, 13 June 2017
तुम्हारा आग्रह माँ...
दुविधा में हूँ
कैसे स्वीकार करूँ
तुम्हारा आग्रह माँ...
बरसों बीत गये
तुमको देखे,
बहुत शिकायतें हैं तुमसे,
इतने बरसों की।
मेरा कसूर क्या था
जो तुम मुझको भूल गई,
एक नन्हीं जान को
अपनी खुशियों की खातिर
भूल गई।
तुम्हारे आँचल की छांव को
हमेशा तरसती रही हूँ,
बिन माँ की बच्ची
सुनते-सुनते बड़ी हुई हूँ।
अब जीना मैंने सीख लिया था,
बिन आँचल की छांव के,
जैसे कड़ी धूप में भी
रुक न सके जो पांव थे।
एक मौका दिया है वक्त ने
शायद फिर हमको भी,
तुम्हारा प्रेम जागृत हुआ है
इतने वर्षों बाद भी।
चाहती हूँ मैं भी
तुम्हारे आँचल में समा जाना,
वर्षों का जो खालीपन था,
चाहती हूँ उसे समेट लेना।
जानती हूँ तुम भी
जूझ रही हो ज़िंदगी से,
बस एक बार पुकार लो
तो चली आऊं मैं दौड़ के।
कैसे बताऊं सबको,
ये कहानी तुम्हारी और मेरी ज़िंदगी की,
पर एक दिन वक्त सुना ही देगा,
दास्तां माँ -बेटी की...!!!
#ज्योत्सना