जी कैसे पाते हो तुम मन में इतनी घृणा भरकर,
सांस कैसे ले पाते हो उस घुटन भरी हवा में,
क्या तुम्हारा मन नहीं होता मुस्कराने का?
जैसे मुस्काते हैं फूल उपवन में?
जीवन सरल है बहुत जीने का ढंग बदल जाये अगर,
नफरतों का साया छीन लेता है खुशियों को।
मुस्कराओ जी भर के,
उतार फेंको इस झूठे अहम् के लबादे को।
गुनगुनाओ फिर से वही गीत,
जो तुम गुनगुनाया करते थे उन कोंपलो के आने पर...
बन जाओ न फिर वही बस मेरे लिए...!!!
#ज्योत्सना
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