पतझड़ के सूखे पेड़ की तरह लगते हो तुम,
जो बिल्कुल स्थिर खड़ा हो उपवन में,
पल्लव विहिन सूखी टहनियां, जो सहती हैं शीत को,
उम्मीद है एक दिन
तुम पर भी नई कोंपले फूटेंगी
और संचार होगा नवजीवन का,
तब तुम भी नवीन पल्लवों के संग,
झूमोगे और लहलहा उठोगे,
न जाने कब ये पतझड़ खत्म होगा
और बसंत आयेगा तुम्हारे जीवन में....!!!
#ज्योत्सना
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