Monday, 22 February 2016

वो बाबुल का अंगना

मौसम हुआ सुहाना,
याद आया फिर दिन पुराना,
वो बाबुल का अंगना,
वो चंदा का आना,
वो नहरों की कल-कल,
वो पेड़ों का लहराना।
वो कोयल का कूकना,
वो पत्तों का झरना,
रोज सवेरे आंगन बुहारना,
वो पेड़ वो पौधे जो रोपे थे कभी,
उनका यूं मस्ती में झूमना।
कभी रोना, कभी हंसना,
जीवन की लड़ाई को लड़ते जाना,
आज फिर याद आया,
वो बाबुल का अंगना।
#ज्योत्सना

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