Sunday, 19 November 2023

पत्तल में खाने से लाभ-

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि, हमारे देश में 2000 से अधिक वनस्पतियों की पत्तियों से तैयार किये जाने वाले पत्तलों और उनसे होने वाले लाभों के विषय मे पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान उपलब्ध है पर मुश्किल से पाँच प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग हम अपनी दिनचर्या में करते है।


आम तौर पर केले की पत्तियों में खाना परोसा जाता है। प्राचीन ग्रंथों में केले की पत्तियों पर परोसे गये भोजन को स्वास्थ्य के लिये लाभदायक बताया गया है। आजकल महंगे होटलों और रिसोर्ट मे भी केले की पत्तियों का यह प्रयोग होने लगा है।

नीचे चित्र में सुपारी के पत्तों से बनाई गई प्लेट, कटोरी व ट्रे हैं , जिनमें भोजन करना स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक है
जिसे प्लास्टिक, थर्माकोल के ऑप्शन में उतरा गया है क्योंकि थर्माकोल व प्लास्टिक के उपयोग से स्वास्थ्य को बहुत हानि भी पहुँच रही है ।

सुपारी के पत्तों यह पत्तल केरला में बनाई जा रही हैं और कीमत भी ज्यादा नहीं है , तक़रीबन 1.5/- से 2/- साइज और क्वांटिटी के हिसाब से अलग अलग है।

पलाश के पत्तल में भोजन करने से स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है।

केले के पत्तल में भोजन करने से चांदी के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है ।

रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों के लिये पलाश से तैयार पत्तल को उपयोगी माना जाता है। पाचन तंत्र सम्बन्धी रोगों के लिये भी इसका उपयोग होता है। आम तौर पर लाल फूलों वाले पलाश को हम जानते हैं पर सफेद फूलों वाला पलाश भी उपलब्ध है। इस दुर्लभ पलाश से तैयार पत्तल को बवासिर (पाइल्स) के रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है।


जोड़ों के दर्द के लिये करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी माना जाता है। पुरानी पत्तियों को नयी पत्तियों की तुलना मे अधिक उपयोगी माना जाता है।


लकवा (पैरालिसिस) होने पर अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तलों को उपयोगी माना जाता है।

पत्तलों से अन्य लाभ :

सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिट्टी में दबा सकते है l

न पानी नष्ट होगा l

न ही कामवाली रखनी पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा l

न केमिकल उपयोग करने पड़ेंगे।

न केमिकल द्वारा शरीर को आंतरिक हानि पहुंचेगी l

अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक आक्सीजन भी मिलेगी l

प्रदूषण भी घटेगा ।

सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह गाड़ने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है, एवं मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है l

पत्तल बनाने वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा, 

आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा सकते हैं, जैसे कि, आप जानते ही हैं कि, जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर नदियों में ही छोड़ दिया जायेगा। जो जल प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है।

Wednesday, 8 July 2020

'देवदार व बोगेनविलिया' का मोहब्बतनामा, अब केवल यादों में'

5 जुलाई 2015 को रविवार की सुबह ग्यारह बजे के आस-पास का समय था जब मेरे कदमों ने पहली बार अल्मोड़ा की धरती को छुआ था। मेरे लिए नया शहर था उस समय। प्राकृतिक छटा से भरपूर। जब हल्द्वानी सुबह सात बजे ट्रेन पहुंची तो तलाश हुई अल्मोड़ा जाने वाली टैक्सी की। टैक्सी से अल्मोड़ा तक का सफर काफी अच्छा रहा। पहाड़ मेरे लिए अंजान तो नहीं थे लेकिन कुमाऊँ मंडल से ये मेरा पहला परिचय था। 
टैक्सी से अल्मोड़ा कब आया पता ही नहीं चला। नगरपालिका के पास उतरने पर फिर तलाश हुई रहने के लिए होटल की। नजदीकी होटल में कमरा मिल गया तो रात भर के सफर की थकान तब जाकर दूर हुई। मानसून में पहाड़ वैसे भी बहुत अलमस्त से लगते हैं और गर्मी में तो पहाड़ सुकून देते ही हैं।
दिन भर आराम करने के बाद तब तय हुआ कि थोड़ा बाजार घूमा जाये और सोमवार को ऑफिस ज्वॉइन करना था तो लोकेशन का भी पता करना था।
होटल से निकलकर जब लोगों से पूछते-पूछते माल रोड़ की तरफ बढ़े तब अल्मोड़ा किताब घर तक जाकर पता लगा ऑफिस का।
तब उसी रास्ते पर पहली बार गोविन्द वल्लभ पंत पार्क के अंदर ये विशालकाय बोगेनविलिया व देवदार का पेड़ देखा था। 
उसके बाद उन चार सालों में अनगिनत बार इसके आगे से, पार्क के अंदर से, सीढ़ियों से आना जाना हुआ। कई बार तस्वीरें भी ली। इनकी कहानियां भी सुनी, पढ़ी। किसी ने कहा सौ साल से अधिक पुराना है ये तो कहीं पढ़ा साठ साल पुराना है।
अल्मोड़ा के सुपर ट्री के नाम से विख्यात देवदार व बोगेनविलिया से जहाँ लोगों की बहुत सी यादें जुड़ी हैं,वहीं कॉलेज के बच्चों व कई दलों का ये मीटिंग प्वॉइंट व धरना स्थल तक भी रहा।
अल्मोड़ा की पहचान बन चुका ये पेड़ सबकी अलग-अलग भावनाओं से जुड़ा है। कोई कहता कि देवदार व बोगेनविलिया की मोहब्बत की दास्तां है ये। जैसे देवदार की बांहों में बोगेनविलिया पूरी तरह समाहित होकर देवदार को अपनी टहनियों से पूरी तरह आच्छादित कर अपने प्रेम का एहसास दिलाता हो। अप्रैल-मई से खिलना शुरु होता तो तब इसकी रौनक ही देखते बनती और बैंगनी फूलों से लदा ये विशालकाय पेड़ हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता चला जाता। पर्यटकों के लिए सैल्फी पॉइंट बन गया था ये स्थान।
आज सुबह मानसून की पहली बारिश में देवदार का वृक्ष, जो कि जड़ों से खोखला हो चुका था, वो संभल नहीं पाया और बोगेनविलिया को साथ लेकर जमींदोज़ हो गया।
इसके साथ ही #अल्मोड़ा शहर से जुड़ी, इसकी एक पहचान खत्म हो गई। अब तस्वीरों में ही रह गया दोनों का मोहब्बतनामा।
याद रहोगे तुम दोनों हमेशा...!!!
#ज्योत्सना
(तस्वीर मई 2017 की है मेरे द्वारा ली गई,
आयुष्मान भी है इस तस्वीर में।)

Friday, 6 March 2020

सोशल मीडिया की मित्रता

कभी-कभी ज़िंदगी में अचानक कुछ अन अपेक्षित घटनायें घटित हो जाती हैं।
आपके पास अज्ञात नं. से किसी परिचित महिला का फोन आना, जिसे आपने कभी देखा नहीं, बस आवाज़ सुनी हो वो भी किसी अन्य मित्र के माध्यम से।
आपके पास सहायता की गुहार लगाना, उस तथाकथित मित्र से उसके जीवन में हस्तक्षेप न करने को कहना। अपनी आप-बीती सुनाना। उस तथाकथित मित्र द्वारा उसे प्रताड़ित किया जाना।
ये सब अन अपेक्षित था। वो तथाकथित मित्र जो कि सुशिक्षित, विद्वान व विवेकी पुरुष के रुप में स्थापित हुआ हो, उसके द्वारा किसी स्त्री को वैचारिक हिंसा व मानसिक प्रताड़ना देना, कुछ अजीब सा लगा।
ये क्या हो रहा है आखिर हमारे सुशिक्षित समाज में? आखिर कैसा नकाब ओढ़ा हुआ है इस सभ्य समाज ने?
सोशल मीडिया की ऐसी मित्रता का हश्र देखकर किसी पर भी विश्वास करना मुश्किल होता जा रहा है।
उन दोनों की पहचान यूं तो मीडिया से संबंधित है लेकिन यूं उज़ागर करना ठीक नहीं लग रहा।
एक स्त्री के रुप में सोच कर देखा जाये तो हैल्पलाईन आदि में शिकायत कर परिवार, समाज में बदनामी का डर उसे सता रहा है, वहीं मानसिक रुप से प्रताड़ना उसे दिनों दिन कमज़ोर कर रही है और उसके कैरियर के लिए भी घातक हो रही है। रेडियो की जॉब का इस्तीफा तैयार कर वो अपना कैरियर भी दांव पर लगा चुकी है।

ये सोशल मीडिया पर सभी के लिए एक सीख है कि एक संतुलन बनाकर ही इस प्रकार के संबंधों को स्वीकृति दें।
खासकर स्त्रियों के लिए कि वो भावनात्मक रुप से जुड़ते समय इन बातों का ध्यान रखें।
#ज्योत्सना

Tuesday, 21 January 2020

हाँ, एक पिता है वो...

घर में शांति रहे,
ये सोचकर
अपनी इच्छाओं का
घोंट देता है गला वो।
बात ज्यादा न बढ़े
ये सोचकर
कई बातों को
कर देता है अनसुना वो।
खाने का शौकिन है बहुत
फिर भी रोज
वही सादी रोटी सब्जी को
बिना शिकायत खा लेता है वो।
सब कुछ पास होते हुए भी
बस मर्यादाओं की सीमा में
बंधा है वो।
#ज्योत्सना

Thursday, 9 January 2020

रोना ही है मुझको अब जी भर कर।

हर बार कहते हो मुझसे
पी जाती हूँ मैं अश़्कों को,
आँखों में उतर आती है
किसी बात पर जब नमी,
अचानक गायब हो जाती है,
बातों-बातों में,
यही कहना तुम्हारा हर बार होता है
कि पी जाती हूँ मैं अश़्कों को,
पर अब दूर हूँ तुमसे बहुत,
अब पी न पाऊँगी,
रोना ही है मुझको
अब जी भर कर...!
#ज्योत्सना


Monday, 4 March 2019

वो कुछ दिन गंगा किनारे...

अक्सर उस शहर पर पढ़ती है नज़र
तो याद आ  जाती हैं पुरानी यादें
जब पहली बार ठीक से देखा
और जाना प्रकृति को,
बियाबान जंगल में यूं
तम्बू में रहना,
शहर की चकाचौंध से दूर,
गंगा की कलकल बहती धारा की
जब चांदनी रात में आवाज़ सुनाई देती
और चांदनी में नहाई चांदी सी रेत चमकती,
यूं अलाव जलाये आधी रात तक सबसे बतियाना,
जिंदगी जैैसे आज भी बुला रही हो वहाँ...!!

Sunday, 13 January 2019

माँ....

सब कुछ भुलाकर काश ज़िंदगी हो पाती कोरे पन्नों सी...
ऐसा नहीं कि सब खराब हो...
बहुत कुछ पाया भी है...
और वो सब मिला उसकी वजह से...
जो जिंदगी में था ही नहीं...
जब अभाव होता है जिंदगी में,
तभी ज़ुनून होता है कुछ पाने का...
लोगों की जो नज़रें देखती थी और जतलाती थी बेचारगी को,
सच कहूं वही प्रेरित करती थी कुछ कर गुजरने को....
अपना मुकाम पाने को जो....
हाँ, बिन माँ के बहुत कुछ सरल नहीं था ज़िंदगी में,
पिता का साया सदा साथ रहा,
पर कभी लगता है ना, माँ होती तो ऐसा होता,
वैसा होता, ज़िंदगी कुछ तो अलग होती ना...
हाँ, ये अभाव हमेशा रहा जीवन में...
आज भी है जब आभासी दुनियां में
देखती हूँ  तुमको...
पर न जाने क्यों अज़नबी लगती हो मुझे तुम... माँ...
इस ज़िंदगी की कहानी का सूत्रधार तो तुम ही हो माँ....