एक तस्वीर
जो छपी है
सदियों से
मनमस्तिष्क में,
बहुत मुश्किल है
बदलना उसका,
आज फिर यादआया
कह देना उसका,
"निर्वात"
भर जाया करता है।
#ज्योत्सना
Saturday, 13 May 2017
निर्वात
Thursday, 11 May 2017
बन जाओ न फिर वही बस मेरे लिए...!!!
जी कैसे पाते हो तुम मन में इतनी घृणा भरकर,
सांस कैसे ले पाते हो उस घुटन भरी हवा में,
क्या तुम्हारा मन नहीं होता मुस्कराने का?
जैसे मुस्काते हैं फूल उपवन में?
जीवन सरल है बहुत जीने का ढंग बदल जाये अगर,
नफरतों का साया छीन लेता है खुशियों को।
मुस्कराओ जी भर के,
उतार फेंको इस झूठे अहम् के लबादे को।
गुनगुनाओ फिर से वही गीत,
जो तुम गुनगुनाया करते थे उन कोंपलो के आने पर...
बन जाओ न फिर वही बस मेरे लिए...!!!
#ज्योत्सना
Subscribe to:
Comments (Atom)