सोचती हूँ कि तुम्हारे दायरे से कहीं दूर चली जाऊँ,
लेकिन क्या करुं
जिंदगी की राहें,
तुम तक आकर रुक जाती हैं,
तुम्हारे अलावा और कोई विकल्प दिखाई नहीं देता।
मन भटकता है,
तुम्हारे पास आना चाहता है,
तुम्हें आसपास महसूस करता है,
लेकिन,
समय का अंतराल मुझे तुमसे दूर ले जाता है।
लेकिन जब-जब तुम्हारी छवि,
मेरे स्मृति पटल पर अंकित होती है,
तुम्हारी यादें पुनर्जीवित हो उठती हैं,
और फिर लगता है,
जैसे समय फिर लौट आया हो,
लेकिन कुछ पलोँ के लिए।
-ज्योत्सना (1996)
लेकिन क्या करुं
जिंदगी की राहें,
तुम तक आकर रुक जाती हैं,
तुम्हारे अलावा और कोई विकल्प दिखाई नहीं देता।
मन भटकता है,
तुम्हारे पास आना चाहता है,
तुम्हें आसपास महसूस करता है,
लेकिन,
समय का अंतराल मुझे तुमसे दूर ले जाता है।
लेकिन जब-जब तुम्हारी छवि,
मेरे स्मृति पटल पर अंकित होती है,
तुम्हारी यादें पुनर्जीवित हो उठती हैं,
और फिर लगता है,
जैसे समय फिर लौट आया हो,
लेकिन कुछ पलोँ के लिए।
-ज्योत्सना (1996)
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