सभी आकांक्षायें
पूरी नहीं होती,
इस कटु सत्य को
जानते हुए भी
मनुष्य
आशा क्यों करता है?
कहते हैं कि
उम्मीद पर
दुनिया टिकी है!
लेकिन
जब किसी की
उम्मीदें ही
ध्वस्त हो जायें तो?
उम्मीद के भरोसे
कब तक रहे?
क्या आजीवन गुजार दे
इस उम्मीद की तृष्णा में?
#ज्योत्सना (1996 मे मेरे द्वारा लिखी गई रचना)
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