Tuesday, 21 January 2020

हाँ, एक पिता है वो...

घर में शांति रहे,
ये सोचकर
अपनी इच्छाओं का
घोंट देता है गला वो।
बात ज्यादा न बढ़े
ये सोचकर
कई बातों को
कर देता है अनसुना वो।
खाने का शौकिन है बहुत
फिर भी रोज
वही सादी रोटी सब्जी को
बिना शिकायत खा लेता है वो।
सब कुछ पास होते हुए भी
बस मर्यादाओं की सीमा में
बंधा है वो।
#ज्योत्सना

Thursday, 9 January 2020

रोना ही है मुझको अब जी भर कर।

हर बार कहते हो मुझसे
पी जाती हूँ मैं अश़्कों को,
आँखों में उतर आती है
किसी बात पर जब नमी,
अचानक गायब हो जाती है,
बातों-बातों में,
यही कहना तुम्हारा हर बार होता है
कि पी जाती हूँ मैं अश़्कों को,
पर अब दूर हूँ तुमसे बहुत,
अब पी न पाऊँगी,
रोना ही है मुझको
अब जी भर कर...!
#ज्योत्सना