Sunday, 13 January 2019

माँ....

सब कुछ भुलाकर काश ज़िंदगी हो पाती कोरे पन्नों सी...
ऐसा नहीं कि सब खराब हो...
बहुत कुछ पाया भी है...
और वो सब मिला उसकी वजह से...
जो जिंदगी में था ही नहीं...
जब अभाव होता है जिंदगी में,
तभी ज़ुनून होता है कुछ पाने का...
लोगों की जो नज़रें देखती थी और जतलाती थी बेचारगी को,
सच कहूं वही प्रेरित करती थी कुछ कर गुजरने को....
अपना मुकाम पाने को जो....
हाँ, बिन माँ के बहुत कुछ सरल नहीं था ज़िंदगी में,
पिता का साया सदा साथ रहा,
पर कभी लगता है ना, माँ होती तो ऐसा होता,
वैसा होता, ज़िंदगी कुछ तो अलग होती ना...
हाँ, ये अभाव हमेशा रहा जीवन में...
आज भी है जब आभासी दुनियां में
देखती हूँ  तुमको...
पर न जाने क्यों अज़नबी लगती हो मुझे तुम... माँ...
इस ज़िंदगी की कहानी का सूत्रधार तो तुम ही हो माँ....

Sunday, 6 January 2019

वो अजनबी... यादों के झरोख़ों से...

-"दीदी की ग्लूकोज़ बोतल चेंज करनी है।"
नर्स रुम में जाकर मैंने वहाँ अकेले बैठे एक इन्टर्न डॉक्टर से कहा।
-"ओके"
वो मेरे साथ चला आया क्योंकि वहाँ कोई नर्स नहीं थी उस वक्त।
-"वैसे ये मेरा काम नहीं है।"
नई ड्रीप बदलने में परेशानी हो रही थी उसको तो मुझे अपनी ओर देखकर वो बोला।
मैं मुस्करा दी तो वो भी मुस्कराने लगा।
उसके बाद वो झेंपता सा चला गया।
दो दिन बाद अपने सीनियर डॉक्टर के साथ वो फिर विजीट पर आया तो उस वक्त मैं टिफीन से खाना खा रही थी। कनखियों से देख कर हल्का मुस्करा दिया और मैंने भी सर नीचे कर लिया।
फिर दीदी नहीं रही और वो भी समय के साथ जिम्मेदारियों के बढ़ते स्मृतियों से विस्मृत होता चला गया।
ये उस वक्त की बात है जब मैं बी.एस.सी. प्रथम वर्ष में पढ़ रही थी और दीदी अस्पताल में एडमिट थी।
अस्पताल के उन नौ-दस दिनों की यादों में ये क्षणिक पल भी कभी-कभी याद आ जाते हैं।
उसका नाम भी नहीं पता कर पाई और अब पता नहीं कहाँ होगा वो...!!!
#ज्योत्सना