Saturday, 21 April 2018

कुछ अनकहा रह गया...

दर्द के साये
जब कभी
चले आते हैं,
अन्तर्मन को
भीगा जाते हैं,
नम आँखों से
देखो तो
कितना कुछ
पीछे छूट गया,
कुछ कहा था,
कुछ अनकहा रह गया।
#ज्योत्सना

आख़िर एक स्त्री ही तो हूँ मैं...

रोज जूझती हूँ
कभी बाहर की
दुनिया से,
तो कभी
उस दुनिया से
जहाँ चलता
अन्तर्द्वंद्व है,
आखिर हूँ तो
एक स्त्री ही ना।

कितना ही कठोर
बन जाऊं,
पर पलता है
एक कोमल मन भी,
मिली प्रतिष्ठा जग में,
पर अक्सर अपने
दे जाते चोट
इस मन को,
आखिर एक स्त्री
ही तो हूँ मैं।
#ज्योत्सना