संवेदनायें जताई जाती हैं
मन में घुमड़ते भावों से,
और अक्सर व्यक्त होती हैं
आँसूओं की बहती धारा से...
अचानक सूख जाती है
ये अश्रुधारा,
जब संवेदनायें मरने लगती हैं,
मन पत्थर होने लगता है और भावहीन
जैसे बंजर भूमि पर कोई बीज
अंकुरित नहीं होता,
बिना खाद, पानी व मानवीय प्रयासों के,
उसी तरह मन भी बंजर होने लगता है,
प्रेमरुपी खाद, पानी के बगैर,
और सूखने लगती है प्रेम की पौध,
मन भावशून्य हो जाता है तब
और आँखें शुष्क,
हाँ, संवेदनाओं की मौत भी
कुछ ऐसी ही होती है...!!!
#ज्योत्सना
Sunday, 25 November 2018
संवेदनाओं की मौत...
Saturday, 12 May 2018
मन...
बहुत कुछ घुमड़ता रहता है मन में,
कभी मायूस भी हो जाता है
तो कभी पल भर में
लौट आता है वहीं पर
सब कुछ भूलकर...
कभी लौट जाना चाहता है
मन अब घर की ओर,
कब तक रहेगा ये भटकाव
ज़िंदगी में,
एक स्थायित्व चाहता है
अब अपनों के साथ...
सोचते बहुत हैं हम
कुछ अलग कर जायेंगे,
ज़िंदगी को जीना सीखा जायेंगे,
पर इस बीच खुद की ज़िंदगी
पीस जाती है,
चक्की के दो पाटों के बीच,
अनायास मन कुलबुलाने लगता है,
घर छोटा सा अपना
वापस बुलाने लगता है...
दूसरों के लिए जीते-जीते
कब हम अपने लिए जीना भूल जाते हैं,
याद नहीं रहता,
वक्त न जाने कितना कुछ
समेट ले गया,
ज़िंदगी को अब
गले लगाना चाहता है मन,
थक गया है बहुत
बस अब जीना चाहता है मन...!!!
#ज्योत्सना
Saturday, 21 April 2018
कुछ अनकहा रह गया...
दर्द के साये
जब कभी
चले आते हैं,
अन्तर्मन को
भीगा जाते हैं,
नम आँखों से
देखो तो
कितना कुछ
पीछे छूट गया,
कुछ कहा था,
कुछ अनकहा रह गया।
#ज्योत्सना
आख़िर एक स्त्री ही तो हूँ मैं...
रोज जूझती हूँ
कभी बाहर की
दुनिया से,
तो कभी
उस दुनिया से
जहाँ चलता
अन्तर्द्वंद्व है,
आखिर हूँ तो
एक स्त्री ही ना।
कितना ही कठोर
बन जाऊं,
पर पलता है
एक कोमल मन भी,
मिली प्रतिष्ठा जग में,
पर अक्सर अपने
दे जाते चोट
इस मन को,
आखिर एक स्त्री
ही तो हूँ मैं।
#ज्योत्सना