मौसम हुआ सुहाना, 
याद आया फिर दिन पुराना,
वो बाबुल का अंगना,
वो चंदा का आना,
वो नहरों की कल-कल,
वो पेड़ों का लहराना।
वो कोयल का कूकना,
वो पत्तों का झरना,
रोज सवेरे आंगन बुहारना,
वो पेड़ वो पौधे जो रोपे थे कभी,
उनका यूं मस्ती में झूमना। 
कभी रोना, कभी हंसना,
जीवन की लड़ाई को लड़ते जाना,
आज फिर याद आया,
वो बाबुल का अंगना।
#ज्योत्सना
Monday, 22 February 2016
वो बाबुल का अंगना
Wednesday, 10 February 2016
भोर का स्वप्न
खफा हूँ आज खुद से ही, 
वो समझ बैठे कि 
गुनाह उनसे हुआ है, 
स्नेह की बारिश कुछ यूं हुई 
कि पिघल पड़ा मन, 
अश्रुबूंदों ने धो दिए 
सब शिकवे गिले।
खिल उठा रोम-रोम, 
बसंत ऋतु में 
जब दो दिल 
आज कुछ यूं मिले।
स्वप्न था शायद भोर का,
सुना है
सच होते हैं न भोर के स्वप्न...?
#ज्योत्सना
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