बहुत कुछ घुमड़ता रहता है मन में,
कभी मायूस भी हो जाता है
तो कभी पल भर में
लौट आता है वहीं पर
सब कुछ भूलकर...
कभी लौट जाना चाहता है
मन अब घर की ओर,
कब तक रहेगा ये भटकाव
ज़िंदगी में,
एक स्थायित्व चाहता है
अब अपनों के साथ...
सोचते बहुत हैं हम
कुछ अलग कर जायेंगे,
ज़िंदगी को जीना सीखा जायेंगे,
पर इस बीच खुद की ज़िंदगी
पीस जाती है,
चक्की के दो पाटों के बीच,
अनायास मन कुलबुलाने लगता है,
घर छोटा सा अपना
वापस बुलाने लगता है...
दूसरों के लिए जीते-जीते
कब हम अपने लिए जीना भूल जाते हैं,
याद नहीं रहता,
वक्त न जाने कितना कुछ
समेट ले गया,
ज़िंदगी को अब
गले लगाना चाहता है मन,
थक गया है बहुत
बस अब जीना चाहता है मन...!!!
#ज्योत्सना